चेतना जागी
समय जागा
पारदर्शी हो रहे
परिदृश्य में सपने
कल तलक जो गैर थे
लगने लगे अपने
अर्धसत्यों का अंधेरा
हार कर भागा
अब नहीं पड़तीं
सुनाई वर्जनाएँ
हर तरफ देतीं
दिखाई सर्जनाएँ
अब तो है निर्माण में
आगत बिना नागा
जो तिरस्कृत थे
वही सब खास हैं
अब सभी के मन
सभी के पास हैं
जुड़ गया फिर से अचानक
नेह का धागा
समय जागा
पारदर्शी हो रहे
परिदृश्य में सपने
कल तलक जो गैर थे
लगने लगे अपने
अर्धसत्यों का अंधेरा
हार कर भागा
अब नहीं पड़तीं
सुनाई वर्जनाएँ
हर तरफ देतीं
दिखाई सर्जनाएँ
अब तो है निर्माण में
आगत बिना नागा
जो तिरस्कृत थे
वही सब खास हैं
अब सभी के मन
सभी के पास हैं
जुड़ गया फिर से अचानक
नेह का धागा
- कृष्ण शलभ
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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