छोड़ना मत गीत का दामन कभी तुम
जब मिलेंगे ये सहारा ही बनेंगे।।
जब मिलेंगे ये सहारा ही बनेंगे।।
सामने जब रेत हो पानी नहीं हो
लिख रहा हो वक्त रेतीले कथानक,
मंच पर जब पात्र सारे सज गए हों
और पर्दा गिर पड़े जैसे अचानक।
छोड़ना मत गीत का दामन कभी तुम
ये मरुस्थल में सदा सावन रचेंगे।।
बात जब घुटने लगे यों ही हृदय में
बात वह जग के लिए अज्ञात होगी,
खूब खुलकर तुम हृदय की बात करना
बात निकलेगी तभी तो बात होगी।
छोड़ना मत गीत का दामन कभी तुम
ये बहुत खुलकर सभी बातें करेंगे।।
ढल रहे हों अश्रु युग की आँख से जब
गीत ही बढ़कर समय की पीर लेंगे,
जबकि धीरज टूटता होगा समय का
गीत ही बढ़कर समय को धीर देंगे।
छोड़ना मत गीत का दामन कभी तुम
कंठ में ये ही समय का विष धरेंगे।।
इस समय में भाव विकृत हो गए हैं
शब्द हैं, पर शब्द के मानी नहीं हैं,
और मन का व्याकरण इतना जटिल है
आँख है, पर आँख का पानी नहीं है।
छोड़ना मत गीत का दामन कभी तुम
गीत भावों को सदा जीवित रखेंगे।।
- चित्रांश वाघमारे
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