शनिवार, 22 जून 2024

नयन अबोले

इक पल मूँदे इक पल खोले
बोल गए दो नयन अबोले।

बात सहज थी अरथ अबूझे
वह पागल जो इनसे जूझे
जिसका मन हो फूल सुबह का
वह सब जाने उसको सूझे
इक पल बैठे युग दे बैठे
हम ऐसे अनजाने भोले।

जल गहरा था तट बहरा था
फिर भी मन यह रुका न रोके
जिस पर कभी नहीं पहरा था
मगन हुआ वह बंदी होके
दो नयनों पर जनम अनगिने
मिली तराज़ू हमने तौले।

इक पल मूँदे इक पल खोले
बोल गए दो नयन अबोले।

- श्रीकांत जोशी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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