बुधवार, 12 जून 2024

पिता

पिता के मुस्कुराने भर से, कहाँ टलता है माँ का ग़ुस्सा
माँ की शिकायत पत्रों की पेटी होते हैं पिता
माँ की चुप्पियों की चाबी होते हैं पिता
माँ जानती है कि चाबी के ना होने पर टूट जाते हैं ताले
इसलिए माँ हमेशा पल्लू में बाँधे रखती है चाबी
और संसार कहता है,
पिता
"बँधे हुए हैं माँ के पल्लू से"।

पिता के कहने भर से, कहाँ थामते हैं बच्चे हाथ
बच्चों की गहरी नींद में जागते हुए सपने होते हैं पिता
ऊब की परछाइयों में
हाथ थामते पिता इतना जानते हैं कि,
अवसाद कितना भी गहरा हो
उम्मीद की तरह टिमटिमाते जुगनूओं से रख देंगे,
मुट्ठी-भर रौशनी संसार की विस्तृतता को बढ़ाते हुए
शायद इसलिए
पिता आसमान-से होते हैं।
पिता थोड़ा-थोड़ा बँट भी जाते हैं 
थोड़ा छोटे काका में, थोड़ा छोटी बुआ में
ताकि थोड़ा-थोड़ा ही सही, पर मिलता रहे उन्हें भी
पिता-सा दुलार...
जाने कैसे उनके पुकारने भर से पूरी कर जाते हैं,
हज़ारों किलोमीटर की दूरियाँ घंटे मात्र में
आज भी नहीं मानते मेरे पिता
उन्हें कभी अपने बच्चों से पृथक...
ऐसा कहते रहते हैं मेरे पिता, अपने स्वर्गीय पिता से।
कम उम्र में पिता को खोने का दुख पिता ने सहा
पिता के जाने के बाद वह अपनी माँ के पिता भी बन गए
बिवाई से लेकर उनकी हर दवाई का
उँगलियों पर हिसाब रखने वाले पिता,
जब चारों उँगलियों को बंद करते हुए
सोचते हैं कि इन उँगलियों से बंद हुई मुट्ठी ही
यदि मेरा भाग्य है
तो यही मेरे जीवित होने का साक्ष्य है।
पिता बनते-बनते पिता सब भूल जाते हैं 
यहाँ तक वे ख़ुद को भी भूल जाते हैं 
मैं उन्हें ढूँढती हूँ
तलाशती हूँ
यहाँ-वहाँ थोड़ा बहुत खोजती हूँ
और वे मंदिर में बैठे "गोपाल" की तरह मुस्कुराते हैं,
मुझे भजन सुनाते हैं...
"ओ पालनहारे
निर्गुण और न्यारे
तुमरे बिन हमरा कौनो नाहीं"।

- हर्षिता पंचारिया
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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