शुक्रवार, 21 जून 2024

जाओ बादल

जाओ बादल,
तुम्हें मरुस्थल बुला रहा है।

वेणुवनों की वल्लरियाँ अब
पुष्पित होना चाह रहीं हैं,
थकी स्पृहायें शीतलता में
जी भर सोना चाह रहीं हैं।
स्वप्न तुम्हारा
कब से झूला झुला रहा है।
उसके ऊपर निष्प्रभाव है
दुनिया भर का जादू टोना,
जिसने भी चाहा जीवन में
मरुथल जाकर बादल होना।
द्वार सफलता
का उसके हित खुला रहा है।
फिर भी मेरी एक विनय है
अतिवादी होने से बचना,
सम्यक वृष्टि चाहिए इसको
जटिल धरा की है संरचना।

उसे जगाना
ताप जिसे भी सुला रहा है।

- ज्ञान प्रकाश आकुल
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से

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