मैंने नहीं कल ने बुलाया है
ख़ामोशियों की छतें,
आबनूसी किवाड़ें घरों पर
आदमी आदमी में दीवार है
तुम्हें छेणियाँ लेकर बुलाया है
मैंने नहीं कल ने बुलाया है
सीटियों से
साँस भरकर भागते
बाज़ार-मिलों दफ़्तरों को
रात के मुर्दे
देखती ठंडी पुतलियाँ
आदमी अजनबी
आदमी के लिए
तुम्हें मन खोलकर मिलने बुलाया है
मैंने नहीं कल ने बुलाया है
बल्ब की रौशनी
शेड में बंद है
सिर्फ परछाईं उतरती है
बड़े फुटपाथ पर
ज़िंदगी की जिल्द के
ऐसे सफ़े तो पढ़ लिए
तुम्हें अगला सफ़ा पढ़ने बुलाया है
मैंने नहीं कल ने बुलाया है
- हरीश भादानी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
हमारे आज के, अबोले, अमानुसपन को कल से ही उम्मीद है..काश, कल छेनियां लेकर, मन खोलकर मिलने आ जाओ, ज़िन्दगी का अगला सफ़ा खुल जाए.. आमीन!!
जवाब देंहटाएंअमिताभ खरे