धूप के अक्षर
अँधेरी रात की काली स्लेट पर
आसानी से लिखे जा सकते हैं
कोई ज़रूरी नहीं कि तुम्हारे हाथों में
चँद्रमा की चॉक हो।
इसके लिए मिट्टी ही काफ़ी है
वही मिट्टी
जो तुम्हारे चेहरे पर चिपकी है
तुम्हारे कपड़ों पर धूल की शक्ल में ज़िंदा है
तुम्हारी सुंदर जिल्द वाली किताबों में
धीरे-धीरे भर रही है।
तुम सूरज के पुजारी हो न?
तो सुनो
यह मिट्टी यूँ ही जमने दो परत-दर परत।
देख लेना
किसी दिन कोई सूरज
यहीं से, बिल्कुल यहीं से
उगता हुआ दिखाई देगा
और मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं होगा।
अँधेरी रात की काली स्लेट पर
आसानी से लिखे जा सकते हैं
कोई ज़रूरी नहीं कि तुम्हारे हाथों में
चँद्रमा की चॉक हो।
इसके लिए मिट्टी ही काफ़ी है
वही मिट्टी
जो तुम्हारे चेहरे पर चिपकी है
तुम्हारे कपड़ों पर धूल की शक्ल में ज़िंदा है
तुम्हारी सुंदर जिल्द वाली किताबों में
धीरे-धीरे भर रही है।
तुम सूरज के पुजारी हो न?
तो सुनो
यह मिट्टी यूँ ही जमने दो परत-दर परत।
देख लेना
किसी दिन कोई सूरज
यहीं से, बिल्कुल यहीं से
उगता हुआ दिखाई देगा
और मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं होगा।
- सिद्धेश्वर सिंह
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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