चिड़िया को नहीं मालूम कितना मीठा गाती है
मोगरा भी है बेखबर अपनी महक से
और हवा जो बहती रहती हरदम
नहीं पता उसे कितनी ज़रुरी है वह
और आदमी जो जानता इतना इतना
मोगरा भी है बेखबर अपनी महक से
और हवा जो बहती रहती हरदम
नहीं पता उसे कितनी ज़रुरी है वह
और आदमी जो जानता इतना इतना
अनजान होना हमेशा बुरा तो नहीं होता
- हरीश करमचंदाणी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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