(१)
वह लंबी लंबी डींगें हाँकता था
अक्सर सब
सुनते थे उसकी बात
उसकी बातों में उन सबके मन का
भेड़िया झाँकता था
अक्सर जब वो बोलता था
सब भेड़ बनकर
बैठ जाते थे, सुनने
मैंने देखा -
कई बार बोलते हुए
उसके मुँह से लार टपकती थी
(२)
सभी भेड़ों के सीने में एक कील चुभी हुई थी
भेड़िया बोलता रहा
कीलों को गड़ाता,
चुभन बढ़ाता हुआ
सहसा, ग़दर-सा मचा
भेड़ों की भीड़ एक भेड़ पर ही झपट पड़ी
वह भेड़,
जो चैन से सो रही थी -
कील निकालकर,
वह लंबी लंबी डींगें हाँकता था
अक्सर सब
सुनते थे उसकी बात
उसकी बातों में उन सबके मन का
भेड़िया झाँकता था
अक्सर जब वो बोलता था
सब भेड़ बनकर
बैठ जाते थे, सुनने
मैंने देखा -
कई बार बोलते हुए
उसके मुँह से लार टपकती थी
(२)
सभी भेड़ों के सीने में एक कील चुभी हुई थी
भेड़िया बोलता रहा
कीलों को गड़ाता,
चुभन बढ़ाता हुआ
सहसा, ग़दर-सा मचा
भेड़ों की भीड़ एक भेड़ पर ही झपट पड़ी
वह भेड़,
जो चैन से सो रही थी -
कील निकालकर,
मार डाली गई
भेड़िया मुस्कुराता रहा देर तक
भेड़िया मुस्कुराता रहा देर तक
- जया पाठक श्रीनिवासन
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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