जहाँ से धोखा हुआ धागों को आपसी रिश्तों में
खुली है अंदर की बात सबसे पहले वहीं पर
परेशान हैं धागे कैसे बची रहेगी
गुलबूटों की मैत्री की अविभक्त मजबूती
और कपड़े के समाज में उनकी पारस्परिकता
तार-तार होने से बचानी है
संबंधों की अटूट डोर
ऐसे में किसी को आया है ख़याल
रफ़ू के बारे में
सिलनी होंगी अब सारी खुली सीवनें
गूँथना होगा एक दूसरे को
फिर उसी तटस्थ भाव से
पुराने दिनों को याद करके
रूठ गए हर धागे को मनाना होगा
पच्चीकारी की रंगीन दुनिया से
निरपेक्ष रहकर
मिटानी होंगी धागों को आपसी ग़लतफ़हमियाँ
और उनके बीच बढ़ी हुई दूरी
एक बार नए सिरे से
नाज़ुक धरातल पर बुना हुआ यह सहमेल
रिश्तों की मज़बूत बुनियाद के बारे में
बहुत कुछ सिखाता है हमें।
- यतीन्द्र मिश्र
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संपादकीय चयन