मैं तो वही खिलौना लूँगा मचल गया दीना का लाल
खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल-उछाल।
व्यथित हो उठी माँ बेचारी- था सुवर्ण-निर्मित वह तो!
"खेल इसी से लाल, नहीं है राजा के घर भी यह तो"!
खेल रहा था जिसको लेकर राजकुमार उछाल-उछाल।
व्यथित हो उठी माँ बेचारी- था सुवर्ण-निर्मित वह तो!
"खेल इसी से लाल, नहीं है राजा के घर भी यह तो"!
"राजा के घर! नहीं-नहीं माँ, तू मुझको बहकाती है,
इस मिट्टी से खेलेगा क्या राजपुत्र, तू ही कह तो"।
फेंक दिया मिट्टी में उसने, मिट्टी का गुड्डा तत्काल,
"मैं तो वही खिलौना लूँगा"- मचल गया दीना का लाल।
"मैं तो वही खिलौना लूँगा"- मचल गया शिशु राजकुमार,
वह बालक पुचकार रहा था पथ में जिसको बारंबार।
वह तो मिट्टी का ही होगा, खेलो तुम तो सोने से।
दौड़ पड़े सब दास-दासियाँ राजपुत्र के रोने से
मिट्टी का हो या सोने का, इनमें वैसा एक नहीं,
खेल रहा था उछल-उछलकर वह तो उसी खिलौने से
राजहठी ने फेंक दिए सब अपने रजत-हेम-उपहार,
"लूँगा वही, वही लूँगा मैं!" मचल गया वह राजकुमार।
- सियारामशरण गुप्त
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से