नदी किनारे
बैठ रेत पर
घने कदंब के तले
होगे बजा रहे
वंशी
तुम मेरे प्रिय साँवले
एक हाथ से दिया बारूँ
एक हाथ से आँखें पोंछूँ
सोचूँ
मुझसे भी होंगे क्या
बिरह ताप के जले
बैठ रेत पर
घने कदंब के तले
होगे बजा रहे
वंशी
तुम मेरे प्रिय साँवले
एक हाथ से दिया बारूँ
एक हाथ से आँखें पोंछूँ
सोचूँ
मुझसे भी होंगे क्या
बिरह ताप के जले
- ठाकुरप्रसाद सिंह
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हरप्रीत सिंह के सौजन्य से
अहा
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