रविवार, 14 जुलाई 2024

जी भर गाओ

मुझ पर प्यारे शोध करो मत
मुझको जी भर गाओ।

चीर-फाड़ कविता के तन की
अच्छी बात नहीं
खून-पसीने की फ़सलें
मिलतीं ख़ैरात नहीं
मुझको माला पहनाओ मत
मुझको जी भर गाओ।

रोकर गाती है जैसे
बुधनी बकरी मरने पर
रोकर गाओ, हँसकर गाओ
तुम भी जी करने पर
मेरी बातें याद करो मत
मुझको जी भर गाओ।

दो दिन या दो सदी जिएँगे
ये कविवर, क्या जानें
हमें जिलाएँगी आकाश-
कुसुम-सी ये संतानें 
ज़्यादा मेरा नाम रटो मत
मुझको जी भर गाओ। 

- बुद्धिनाथ मिश्र
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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