वर्षों से जो मौन खड़े थे
निर्विकार निर्मोह बड़े थे
उन पाषाणों से अब क्यूँकर
अश्रुधार बह निकली अविरल
फिर मन में ये कैसी हलचल?
निश्चल जिनको जग ने माना
गुण-स्वभाव से स्थिर नित जाना
चक्रवात प्रचंड उठते हैं क्यूँ
अंतर में प्रतिक्षण, प्रतिपल
फिर मन में ये कैसी हलचल?
युग बीते जिनसे मुख मोड़ा
जिन स्मृतियों को पीछे छोड़ा
अब क्यूँ बाट निहारें उनकी
पलपल होकर लोचन विह्वल?
फिर मन में ये कैसी हलचल?
- अर्चना गुप्ता
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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