मैंने उसे बोलते सुना है
उसकी अनुपस्थिति में
जबकि उपस्थित होते हुए
वह अक्सर ख़ामोश ही रहा है
उपस्थित देह बड़ी मामूली बात होती है
अनुपस्थिति में आदमी ज़्यादा ठोस तरीकों से उपस्थित होता है
अनुपस्थिति में सुने जा सकते हैं उन शब्दों के अर्थ
जो जल्दबाज़ी में बोल भर दिए गए
पढ़े जा सकते हैं इत्मीनान से चेहरे के वो भाव
जो उसके जाने के बाद मेज़ पर किताब की तरह छूटे रह गए
महसूस की जा सकती है
स्मृतियों की संतरे के छिलके-सी गंध देर तक
उसे भी यूँ ही ज़्यादा देखा, ज़्यादा जाना, ज़्यादा सुना मैंने
साकार उपस्थिति का एक दिन देता है
कई दिन निराकार उपस्थिति के
यूँ ही आते रहा करो दोस्त
जाते रहने के लिए
- पल्लवी त्रिवेदी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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