यूँ तो अपराधी कई थे,
पर हमेशा और बड़ी तादाद में
चींटियाँ ही मारी गईं
वे रात के अँधेरे में चुपचाप
करते थे हमला
चींटियाँ घूमती थी
दिन के उजाले में
झुंड की झुंड बेख़ौफ़
अपराध करते हुए देखी गईं चींटियाँ
और सजा उन्हें ही मिली
बाकी निर्दोष छूट गए
संदेह का लाभ लेकर...!
पर हमेशा और बड़ी तादाद में
चींटियाँ ही मारी गईं
वे रात के अँधेरे में चुपचाप
करते थे हमला
चींटियाँ घूमती थी
दिन के उजाले में
झुंड की झुंड बेख़ौफ़
अपराध करते हुए देखी गईं चींटियाँ
और सजा उन्हें ही मिली
बाकी निर्दोष छूट गए
संदेह का लाभ लेकर...!
- अलकनंदा साने
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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