तेरी चाह है सागरमथ भूधर,
उद्देश्य अमर पर पथ दुष्कर
कपाल कालिक तू धारण कर
बढ़ता चल फिर प्रशस्ति पथ पर
उद्देश्य अमर पर पथ दुष्कर
कपाल कालिक तू धारण कर
बढ़ता चल फिर प्रशस्ति पथ पर
जो ध्येय निरंतर हो सम्मुख
फिर अघन अनिल का कोई हो रुख
कर तू साहस, मत डर निर्झर
है शक्त समर्थ तू बढ़ता चल
जो राह शिला अवरुद्ध करे
तू रक्त बहा और राह बना
पथ को शोणित से रंजित कर
हर कंटक को तू पुष्प बना
नश्वर काया की चिंता क्या?
हे पंथी पथ की चिंता क्या?
है मृत्यु सत्य माना पाति
पर जन्म कदाचित महासत्य
तुझे निपट अकेले चलना है
हे नर मत डर तू भेद लक्ष्य
हे नर मत डर तू भेद लक्ष्य
इस पथ पर राही चलने में
साथी की आशा क्यों निर्बल
भर दंभ कि तू है अजर अमर
तेरा ध्येय तुझे देगा संबल
पथ भ्रमित न हो लंबा पथ है
हर मोड़ खड़ा दावानल है
चरितार्थ तू कर तुझमें बल है
है दीर्घ वही जो हासिल है
बंधक मत बन मोह पाशों का
ये मोह बलात रोकें प्रतिपल
है द्वंद्व समर में मगर ना रुक
जो नेत्र तेरे हो जाएँ सजल
बहते अश्रु की चिंता क्या
हे पंथी पथ की चिंता क्या?
- अमित कपूर
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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