गुरुवार, 11 जुलाई 2024

प्रवासी परिंदे

वे घुड़सवारी करते हैं बर्फ़िली हवाओं के अश्वों की,
अपनी चहक फूँकते हैं विश्व के सबसे ऊँचे पर्वतों के बूढ़े कानों में और
हज़ारों मील चले आते हैं बस दिशाओं पर भरोसा कर
भरोसा कभी चूकता नहीं, 
ये उनसे बेहतर कोई नहीं समझा सकता
जब वे सुनते हैं कि मुई जी.पी.एस बड़ी नई ईजाद है दिमाग वालों की
वे एक साथ एक तिरछी मुस्कान उछालते हैं, 
अपने परों को खुजलाते हैं
और साइबेरिया से उड़ान भरते हुए आ बैठते हैं 
हिंदुस्तान के उसी जंगल की उसी शाख पर
जहाँ वे पिछले जाड़े में आ बैठे थे
चूक शब्द के मायने वे नहीं जानते
वे अकेले नहीं आते
साथ में बाँध लाते हैं ढेरों क़िस्से एक बर्फ़ के देश के
अगर कभी बूझ सको इन पंछियों की भाषा
तुम सुनोगे लोक कथाएँ साइबेरिया की
मैना, कबूतर और गौरैया हैरत से सुना करते हैं कि
होता है एक बर्फ़ का देस जहाँ केवल प्रेम की गर्माहट होती है और
सर्द इग्लू के भीतर सिर्फ़ मन सुलगते हैं
हमारा पीपल जानता है स्लेज वाले बूढ़े और मेंढकी राजकुमारी को
ठीक वैसे ही रूस के दरख़्त हीर और रांझे को खूब पहचानते हैं
दरअसल उनके परों पर क़िस्से सफ़र करते हैं
हमने कबूतर के सिवाय किसी को डाकिया नहीं माना
ये हमारी ज़हानत नहीं बल्कि नादानी है
उनकी चोंच में टंगे होते हैं चिल्का के ख़त 
जो उन्हें बैकाल को सौंपने हैं
उनके पंजों में दबे होते हैं कुछ रंग-बिरंगे पंख जो
तोहफा हैं किसी झक्क सफ़ेद नन्हे ध्रुवीय भालू के लिए
उनके पंखों पर बेतरतीब पड़े हैं कुछ स्पर्श जो
स्मृतियाँ बनेंगे विरह के मौसमों में
कि उन्हें मिले केवल दो ही मौसम संग के
उनका विरह से जलता दिल ग्रीष्म बनता है और
उनका छलछलाए नेत्र तब्दील होते हैं  
बरसात के मौसम में
वे नहीं आते जाड़े से घबराए हुए
ये तो दिमागदारों की एक बेदिल-सी खोज भर है
वे तो उड़े चले आते हैं क्योंकि
किसी अमलतास की डाल पर मन बिंधा रह गया है
किसी हंसिनी की आँखों में जान अटक कर रह गई है
किसी झील की लहर पर एक प्यास मचलती छूट गई है
वे तो उड़े चले आते हैं क्योंकि
पिछले मौसम की कोई कसम पुकारती है
कोई छूटा हुआ साथी मुसलसल याद आता है
मन्नत का वो लाल धागा बारहा कसकता है
वे तो उड़े चले आते हैं क्योंकि
सुंदर मौसमों वाले एक नगर में झील के किनारे
उनकी बीते जन्मों की एक साथिन
उनकी प्रतीक्षा में बैठी कविताएँ लिखती है...

- पल्लवी त्रिवेदी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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