शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के

चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं 
हर एक हाल में तेवर बला के रखते हैं 

मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में 
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखते हैं 

हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी 
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं 

कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा 
बड़े क़रीने से घर को सजा के रखते हैं 

अना पसंद हैं ‘हस्ती’-जी सच सही लेकिन 
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं 

- हस्तीमल हस्ती
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विजय नगरकर के सौजन्य से 

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