रविवार, 13 जुलाई 2025

जहाँ सुख है

जहाँ सुख है
वहीं हम चटककर
टूट जाते हैं बारंबार 

जहाँ दुख है
वहाँ पर एक सुलगन
पिघलाकर हमें
फिर जोड़ देती है।

- अज्ञेय
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1 टिप्पणी:

  1. अज्ञेय मेरे प्रिय कवि हैं। दो विपरीत भावों को एक ही कविता में पिरो दिया है। अति सुंदर!

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