रविवार, 10 दिसंबर 2023

पास तुम रहो

कुछ न हुआ, न हो। 
मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल 
पास तुम रहो!
 
मेरे नभ के बादल यदि न कटे— 
चंद्र रह गया ढका, 
तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे 
लेश गगन-भास का, 
रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम 
हाथ यदि गहो। 

बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा— 
मंद सबों ने कहा— 
मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा— 
ज्ञान जहाँ का रहा, 
रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम 
कथा यदि कहो। 

- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।
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