सब्ज पत्ते धूप की ये आग जब पी जायेंगे,
उजले फर के कोट पहने हल्के जाड़े आयेंगे।
गीले-गीले, मंदिरों में बाल खोले देवियाँ,
सोचती हैं उनके सूरज देवता कब आयेंगे।
सुर्ख़ नीले चाँद-तारे, दौड़ते हैं बर्फ़ पर,
कल हमारी तरहा ये भी धुंध में खो जायेंगे।
दिन में दफ़्तर का क़लम, मिल की मशीनें सब हैं हम,
रात आएगी तो पलकों पे सितारे आयेंगे।
दिल के इन बाग़ी फ़रिश्तों को सड़क पर जाने दो,
बच गए तो शाम तक, घर लौटकर आ जायेंगे।
- बशीर बद्र।
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