कैसी भी रही हो ठंड
ठिठुरा देने वाली या गुलाबी
एक ही स्वेटर था मेरे पास
नीली धारियों वाला
बहिन के स्वेटर बुनने से पहले
किसी की उतरी हुई जॉकिट
पहनता था मैं
जॉकिट में गर्माहट थी पर
जॉकिट पहनकर
ख़ुशी नहीं मिलती थी मुझे
एक उदासी छा जाती थी
मेरे चेहरे पर
बहिन मेरे चेहरे पर छाई
उदासी पढ़कर
ख़ुद भी उदास हो जाया करती थी
बहिन ने थोड़े-थोड़े पैसे बचाकर
ख़रीदें सफ़ेद नीले ऊन के गोले
एक सहेली से
माँगकर लाई सलाइयाँ
किसी पत्रिका के बुनाई विशेषांक से
सीखी डिजाइन
दो उल्टे एक सीधा
एक उल्टा दो सीधे डाले फँदे
कई दिनों तक
नापती रही गर्दन
गिनती रही फँदे
बदलती रही सलाई
ठिठुराती ठंड आने से पहले
एक दिन बहिन ने
पहना दिया मुझे नया स्वेटर
बहिन की हथेलियों की ऊष्मा
समा गई थी स्वेटर में
मेरा स्वेटर देखकर
लड़कियाँ पूछती थीं
कलात्मक बुनाई के बारे में
बहिन के ससुराल जाने के बाद भी
कई वर्षों तक पहनता रहा मैं
नीली धारियों वाला स्वेटर
उस स्वेटर जैसी ऊष्मा
फिर किसी स्वेटर में नहीं मिली
उस स्वेटर की स्मृति से
आज भी मुझे ठंड नहीं लगती
- गोविंद माथुर।
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संपादकीय चयन
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