और पाया कि अगाध करुणा से भर गया हूँ मैं
मैं एक नदी के पास गया
और पाया कि उसकी कोमलता
मेरे भीतर प्रवेश कर रही है
मैं खेत के पास गया
और देखा नमी उतर रही है मेरे भीतर
मैं जंगल के पास गया
और पाया कि एक दुर्लभ संगीत से
मेरी आत्मा के तार झंकृत हो रहे हैं
विस्मय से भर कर
जब मैंने निहारा आकाश को
खुद को पाया विशालता के आगोश में
एक पक्षी, एक पशु और एक पेड़ ने
मेरे दिल के कोने में बनाई जगह
और अंत में
जब मैं एक मनुष्य के पास गया
तो पाया कि मेरे भीतर बची हुई है
प्रेम करने की ताकत
- प्रत्यूष चंद्र मिश्रा।
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विजया सती के सौजन्य से
अति सुन्दर रचना
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