शनिवार, 23 दिसंबर 2023

जब धूप तनिक खिल जाती है

कितना अच्छा लगता है जब धूप तनिक खिल जाती है।
पत्ता-पत्ता लगे विहँसने, कली-कली मुसकाती है।।

घने कुहासे के पीछे से जब सूरज दिख जाता है।
मुरझाए मुखड़ों पर जैसे गीत कोई लिख जाता है।।

थकी हुई गमगीन हवाएँ फिर बहने लग जाती हैं।
गहन उदासी की दीवारें फिर ढहने लग जाती हैं।।

मन की घाटी में अवसादी हिम उस रोज पिघलती है।
जब सीली घनघोर घटा से हल्की धूप निकलती है।।

उजियारे की बाँहें थामे पल खुशियों के आते हैं।
इसीलिए तो तम तजकर हम ज्योतित पथ पर जाते हैं।। 

- रामवृक्ष सिंह।
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विजया सती के सौजन्य से 

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