शनिवार, 9 दिसंबर 2023

चिड़िया और चुरुगन

छोड़ घोंसला बाहर आया,
देखी डालें, देखे पात 
और सुनीं जो पत्ते हिलमिल 
करते हैं आपस में बात;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
"नहीं चुरुगन तू भरमाया"

डाली से डाली पर पहुँचा 
देखी कलियाँ, देखे फूल,
ऊपर उठकर फुनगी जानी 
नीचे झुककर जाना मूल;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
"नहीं चुरुगन तू भरमाया"

कच्चे-पक्के फल पहचाने 
खाए और गिराए काट 
खाने-गाने के सब साथी 
देख रहे हैं मेरी बाट;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
"नहीं चुरुगन तू भरमाया"

उस तरु से इस तरु पर जाता,
जाता हूँ धरती की ओर,
दाना कोई कहीं पड़ा हो 
चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
"नहीं चुरुगन तू भरमाया"

मैं नीले अज्ञात गगन की 
सुनता हूँ अनिवार पुकार,
कोई अंदर से कहता है 
उड़ जा, उड़ता जा पर मार;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
"आज सफल हैं तेरे डैने,
आज सफ़ल है तेरी काया"

- हरिवंश राय बच्चन।
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विजया सती की पसंद 

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