गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

जाते साल के नाम

चेहरे पर बढ़ी कुछ और लकीरें, 
कृष्ण कुंतलों की श्वेत हुई तासीरें, 
बदल गई कुछ अक्षरों की तस्वीरें, 
उलाहने पाती रहीं कुछ और तक़दीरें, 
धुँधली पड़ी उम्मीदों की ताबीरें। 
चढ़े नज़र पर नज़र के चश्मे, 
चाक पर चढ़े कुछ और रिश्ते, 
अहसासों की चुकी कुछ और किश्ते, 
दामन में आस लिए पूजे जाते रहे फ़रिश्ते 
हालातों की आँच में भाप बन 
लम्हा-लम्हा उड़ती रही मासूमियत, 
नश्तरों-सी चुभती रही 
नंबरों को पार करती तारीख़ें। 
भावनाओं के भँवर में डूबती रही 
नसीहतों की कश्तियाँ। 
और हो गया एक और वर्षांत।

- श्रद्धा आढ़ा।
---------------

संपादकीय चयन 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें