शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

आना जब मेरे अच्छे दिन हों

(1)
आना 
जब मेरे अच्छे दिन हों।

जब दिल में 
निष्कपट ज्योति की तरह 
जलती हो 
तुम्हारी क्षीण याद 
और नीली लौ की तरह 
कभी-कभी 
चुभती हो इच्छा।

जब मन के 
अछूते कोने में 
सहेजे तुम्हारे चित्र पर 
चढ़ी न हो 
धूल की परत 
आना जैसे बारिश में अचानक 
आ जाए
कोई अच्छी सी पुस्तक हाथ 
या कि गर्मी में 
छत पर सोते हुए 
दिखे कोई अच्छा सा सपना।

(2)
जब दिमाग साफ़ हो 
खुले आसमान की तरह 
और हवा की तरह 
स्पष्ट हो दिशाएँ
समुद्र के नीले विस्तार-सा 
विशाल हो मन 
और पर्वत-सा अडिग हो 
मुझ पर विश्वास।

आना तब 
वेगवान नदी की तरह 
मुझे बहाने  
आना 
जैसे बादल आते हैं 
रूठी धरती को मनाने।

(3)
आना 
जब शहर में अमन-चैन हो 
और दहशत से अधमरी 
न हो रही हों सड़कें 

जब दूरदर्शन न उगलता हो 
किसी मदांध विश्वनेता द्वारा छेड़े 
युद्ध की दास्तान।

आना जैसे ठंडी हवा का झोंका 
आया अभी-अभी 
आना जब हुई हो 
युद्ध की समाप्ति की घोषणा 
अभी-अभी।

(4)
आना 
जब धन बहुत न हो 
पर हो।

हो यानी इतना 
की बारिश में भीगते 
ठहर कर कहीं
पी सकें 
एक प्याला गर्म चाय‌।

कि ठंड के दोपहर में 
निकल सके दूर तक 
और जेबों में 
भर सकें 
मुंगफलियाँ 

बैठ सकें रेलगाड़ी में 
फिर लौटें 
बिना टिकट 
छुपते-छुपाते 
खत्म होने पर 
अपनी थोड़ी-सी जमा पूंजी।

आना 
जब बहुत सरल 
न हुई हो ज़िंदगी।

(5)
जब आत्मदया से 
डबडबाया हो 
मेरा मन।

जब असफलताएँ
छाई हों 
घनघोर निराशा की तरह।
 
जब उठना हो 
अपनी क्षमता पर से 
मेरा विश्वास।

तब देखो 
मत आना 

मत आना 
दया या उपकार की तरह 
आ सको, तो आना 
बरसते प्यार की तरह।

(6)
छूना मुझे 
एक बार फिर 
और देखना 
बाकी है सिहरन 
वहाँ अब भी 
जहाँ छुआ था तुमने 
मुझे पहली बार।

झुकना 
जैसे धूप की ओर झुके 
कोई अधखिला गुलाब 
और देखना 
बसी है स्मृतियों में 
अब भी वही सुगंध 
वही भीनी-भीनी सुगंध 
पुकारना मुझे 
लेकर मेरा नाम 
उसी जगह से 
और सुनना 
प्रतिध्वनि में नाम 
वही तुम्हारा प्यारा नाम।

(7)
मुझे अब भी याद है 
लौटना 
तुम्हारे घर से।

रास्ते भर 
खिड़की से लगे रहना 
एक छाया का 
रास्ते भर 
बने रहना मन में 
एक खुशबू का 
रास्ते भर 
चलना एक कथा का
अनंतर।

जब घिरे 
और ढक ले मुझे 
सब ओर से 
तुम्हारी छाया 
तब आना 
खोजते हुए 
किरण की तरह 
अपना रास्ता।

(8)
इतना हल्का 
कि उड़ सकूँ
पूरे आकाश में 

इतना पवित्र 
कि जुड़ सकूँ
पूरी पृथ्वी से 

इतना विशाल 
कि समेट लूँ
पूरा विश्व अपने में।

इतना कोमल 
कि पहचान लूँ
हल्का-सा स्पर्श।

इतना समर्थ 
कि तोड़ दूँ
सारे तटबंध।

देखना 
मैं बदलूँगा एकदम
अगर तुम 
आ गई अचानक।

(9)
देखो 
तुम अब 
आ भी जाओ 
हो सकता है 
तुम्हारे साथ ही 
आ जाएँ मेरे अच्छे दिन।

- संतोष चौबे।
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संजय सिंह राठौड़ के सौजन्य से 

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