बुधवार, 3 जुलाई 2024

अश्वमेध

तुम बहुत सरपट दौड़े हो
थोड़ा ठहर जाओ
न, तुम नहीं थके,
जानता हूँ
लेकिन तुम्हारी दौड़ ने बहुतों को कुचला है
ठहर जाओ।

तुम्हारी रगों में फड़कती बिजली
तुम पर नहीं
दूसरों पर गिरती है
कोई वल्गा नहीं तुम्हारे मुँह में
फिर भी तुम्हारी पीठ खाली नहीं
वहाँ सवार है पताका
जिसकी फहराती नोंक
तुम्हें नहीं दूसरों को चुभती है
ठहर जाओ।

तुम पूजित हो, अलंकृत हो
ऊर्जा तुममें छटपटाती है
सारी दूब को रौंदकर जब तुम लौटोगे
बिना थके भूमंडल को नाप लेने के
उन्माद से काँपते, सिर्फ़, सिर्फ़ उत्तेजना के कारण
हाँफते
तब तुम्हें काट डालेंगे
वे ही लोग – जिनके लिए तुम दौड़े थे।

वे काट डालेंगे
तुम्हारा प्रचंड मस्तक।
तुम्हारा मेध
उनका यज्ञ है।

-  पुरुषोत्तम अग्रवाल
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

मंगलवार, 2 जुलाई 2024

छंद

मैं सभी ओर से खुला हूँ 
वन-सा, वन-सा अपने में बंद हूँ 
शब्द में मेरी समाई नहीं होगी 
मैं सन्नाटे का छंद हूँ।

- अज्ञेय
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संपादकीय चयन 

सोमवार, 1 जुलाई 2024

जीवन दीप

मेरा एक दीप जलता है।
अँधियारों में प्रखर प्रज्ज्वलित,
तूफ़ानों में अचल, अविचलित,
यह दीपक अविजित, अपराजित।
मेरे मन का ज्योतिपुंज
जो जग को ज्योतिर्मय करता है।
मेरा एक दीप जलता है।
सूर्य किरण जल की बूंदों से
छन कर इंद्रधनुष बन जाती,
वही किरण धरती पर कितने
रंग बिरंगे फूल खिलाती।
ये कितनी विभिन्न घटनाएँ,
पर दोनों में निहित
प्रकृति का नियम एक है,
जो अटूट है।
इस पर अडिग आस्था मुझको
जो विज्ञान मुझे जीवन में
पग पग पर प्रेरित करता है।
मेरा एक दीप जलता है।
यह विशाल ब्रह्मांड
यहाँ मैं लघु हूँ
लेकिन हीन नहीं हूँ।
मैं पदार्थ हूँ
ऊर्जा का भौतिकीकरण हूँ।
नश्वर हूँ,
पर क्षीण नहीं हूँ।
मैं हूँ अपना अहम‌
शक्ति का अमिट स्रोत, जो
न्यूटन के सिद्धांत सरीखा
परम सत्य है,
सुंदर है, शिव है शाश्वत है।
मेरा यह विश्वास निरंतर 
मेरे मानस में पलता है।
मेरा एक दीप जलता है।

- विनोद तिवारी
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अनूप भार्गव के सौजन्य से