बुधवार, 3 सितंबर 2025
जिनकी भाषा में विष था
जिनकी भाषा में विष था
उनके भीतर कितना दुख था
दुखों के पीछे अपेक्षाएँ थीं
अपेक्षाओं में दौड़ थी
दौड़ने में थकान थी
थकान से हताशा थी
हताशा में भाषा थी
भाषा में विष था
उनके भीतर कितना दुख था
- बाबुषा कोहली
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अनूप भार्गव की पसंद
मंगलवार, 2 सितंबर 2025
बहनें
जब बाप गरज रहे होते हैं
बाप जैसे
माँ रो रही होती है
माँ जैसी
भाई खड़े रहते हैं
भाई जैसे
तब
कुछ भाई
कुछ माँ
कुछ बाप जैसी
प्रार्थना में
झुकी रहती हैं
बहनें
- विनोद कुमार श्रीवास्तव
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विजया सती की पसंद
सोमवार, 1 सितंबर 2025
कविता के अरण्य में
यदि तुम देख सको
कविता में उगता है एक पेड़
उस पर बैठती है एक नन्हीं चिड़िया
यदि तुम सुन सको
यहाँ बहती है एक नदी
अपने ही दुखों से सिहरती
कविता के अरण्य में
कवि बहुत हैं
मनुष्य तुम्हें खोजने होंगे।
- रश्मि भारद्वाज
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विजया सती की पसंद
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