फूल झर गए
क्षण-भर की ही तो देरी थी
अभी-अभी तो दृष्टि फेरी थी
इतने में सौरभ के प्राण हर गए
फूल झर गए
क्षण-भर की ही तो देरी थी
अभी-अभी तो दृष्टि फेरी थी
इतने में सौरभ के प्राण हर गए
फूल झर गए
दिन-दो दिन जीने की बात थी,
आख़िर तो खानी ही मात थी;
फिर भी मुरझाए तो व्यथा हर गए
फूल झर गए
तुमको औ’ मुझको भी जाना है
सृष्टि का अटल विधान माना है
लौटे कब प्राण गेह बाहर गए
फूल झर गए।
फूलों-सम आओ, हँस हम भी झरें
रंगों के बीच ही जिएँ औ’ मरें
पुष्प अरे गए, किंतु खिलकर गए
फूल झर गए।
रंगों के बीच ही जिएँ औ’ मरें
पुष्प अरे गए, किंतु खिलकर गए
फूल झर गए।
- कीर्ति चौधरी।
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विजया सती के सौजन्य से