गुरुवार, 19 अक्तूबर 2023

दुश्चरित्र महिलाएँ

पढ़ा गया हमको 
जैसे पढ़ा जाता है काग़ज़ 
बच्चों की फटी कॉपियों का 
चनाज़ोर-गर्म के लिफ़ाफ़े बनाने के पहले!

देखा गया हमको 
जैसे कि कुफ़्त हो उनींदे 
देखी जाती है कलाई घड़ी 
अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद! 

सुना गया हमको 
यों ही उड़ते मन से 
जैसे सुने जाते हैं फ़िल्मी गाने 
सस्ते कैसेटों पर 
ठसाठस्स भरी हुई बस में! 

भोगा गया हमको 
बहुत दूर के रिश्तेदारों के 
दुख की तरह! 

एक दिन हमने कहा 
हम भी इंसान हैं-

हमें क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर 
जैसे पढ़ा होगा बी०ए० के बाद 
नौकरी का पहला विज्ञापन! 

देखो तो ऐसे 
जैसे कि ठिठुरते हुए देखी जाती है 
बहुत दूर जलती हुई आग! 

सुनो हमें अनहद की तरह 
और समझो जैसे समझी जाती है 
नई-नई सीखी हुई भाषा! 

इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई 
एक अदृश्य टहनी से 
टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफ़वाहें 
चीखती हुई चीं-चीं 
‘दुश्चरित्र महिलाएँ, दुश्चरित्र 
महिलाएँ-
किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूलीं-फैलीं 
अगरधत्त जंगली लताएँ! 

खाती-पीती, सुख से ऊबी 
और बेकार बेचैन, आवारा महिलाओं का ही 
शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ...। 

फिर ये उन्होंने थोड़े ही लिखी हैं 
(कनखियाँ, इशारे, फिर कनखी) 
बाक़ी कहानी बस कनखी है। 

हे परमपिताओ, 
परमपुरुषो-
बख़्शो, बख़्शो, अब हमें बख़्शो!

- अनामिका।
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विजया सती की पसंद 

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