शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2023

बस स्टेशन पर दो बूढ़ी स्त्रियांँ

आधी सदी बाद 
मिली हैं शहर के बस स्टेशन पर
दो बूढ़ी स्त्रियांँ - सगी बहनें 
जो पली-बढ़ी थीं एक साथ 
यमुना के कछार के किसी गाँव में।

बाढ़ का पानी कई-कई बार 
जैसे उनके ऊपर से 
गुज़रा था आधी सदी के दौरान।

उनके चेहरों पर थीं 
समय की सलवटें 
जैसे उतरती नदी का पीछे हटता पानी 
बालू और मिट्टी पर 
अपने निशान छोड़ जाता है।

उनके हाथों की उँगलियाँ आपस में 
गुँथी हुई हैं किसी बूढ़े बरगद के 
उघड़ी पड़ी जड़ों की तरह।

हाथों की उभरी हुई नसें 
जैसे नदी किनारे खड़ी डोंगी में बिखरी
पड़ी पटुए की उलझी हुई रस्सी।

उनकी आँखें दिप-दिप कर रही थीं 
जैसे झिरझिर बहती मंद बयार में 
झोंपड़ियों की देहरी पर रखे दिए।

समय रेत की तरह झर रहा था 
बिना किसी आवाज़ के 
आसपास के शोर से अप्रभावित।

- कात्यायनी।
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