सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

फ़नकार

मैंने जो गीत तिरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे 
आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ 

आज दुक्कान पे नीलाम उठेगा उनका 
तूने जिन गीतों पे रखी थी मोहब्बत की असास 

आज चाँदी के तराज़ू में तुलेगी हर चीज़ 
मेरे अफ़्कार मिरी शाइरी मेरा एहसास 

जो तिरी ज़ात से मंसूब थे उन गीतों को 
मुफ़लिसी जिंस बनाने पे उतर आई है 

भूक तेरे रुख़-ए-रनगीं के फ़सानों के एवज़ 
चंद अशिया-ए-ज़रूरत की तमन्नाई है 

देख इस अरसा-ए-गह-ए-मेहनत-ओ-सरमाया में 
मेरे नग़्में भी मिरे पास नहीं रह सकते 

तेरे जल्वे किसी ज़रदार की मीरास सही 
तेरे ख़ाके भी मिरे पास नहीं रह सकते 

आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ 
मैंने जो गीत तिरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे 

- साहिर लुधियानवी।
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असास = नींव
अफ़्कार = विचार 
मंसूब = सम्बद्ध
जिंस = भोग्य वस्तु
अरसा-ए-गह-ए-मेहनत-ओ-सरमाया = मेहनत और पूँजी का रणक्षेत्र 
मीरास = विरासत
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