मोरी हसिया में दे दे धार
ओ लोहार
जड़ काटूँगी मैं इस बार
ओ लोहार
ओ लोहार
जड़ काटूँगी मैं इस बार
ओ लोहार
नार जनम मोरी जात न कोउ
जात न कोउ पात न कोउ
मैं बाग की बिछुड़ी डार
ओ लोहार
पिय बाबुल ने जान रेहन दी
जान रेहन दी आन रेहन दी
मोरे दो-दो साहूकार
ओ लोहार
मुझसे जनम कर मोरे आका
आका मोरे मो पे ही डाका
मोरी नाव मोरी मझधार
ओ लोहार
मोरी हसिया में दे दे धार
जड़ काटूँगी मैं इस बार
- दीपक तिरुवा।
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विजया सती की पसंद
मार्मिक गीत
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