ऐसी छोटी बदरंग धरा,
विश्वास नहीं होता
सहमी-सहमी सी चिड़िया
दाना चुगती है
डैनों को फैलाने से भी
वह डरती है
अपनापन का तो कोई
अहसास नहीं होता
विश्वास नहीं होता
सहमी-सहमी सी चिड़िया
दाना चुगती है
डैनों को फैलाने से भी
वह डरती है
अपनापन का तो कोई
अहसास नहीं होता
क़िस्से आतंकों के
इधर-उधर फैले हैं
जिसको भी देखो-
उसके दामन मैले हैं
वह निर्बंध भरोसा तो
अब पास नहीं होता
चोंच नहीं खुलती नीड़ों में
जब से मौन जड़े
मगर पसीना पहना सभी के
सपने हुए खड़े
सपने हुए खड़े
झूठे वादों का जंगल
तो काश! नहीं होता
अच्छी लगने लगी अभी से
आशा नई फसल की
खाली आँखों में सजती है
खुशी सुनहरे कल की
फूलों की खुशबू को फिर
वनवास नहीं होता
- शांति सुमन।
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बिनीता सहाय की पसंद
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