गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

अचरज

आजसवेरे
अचरजएकदेखमैंआया।

एकघने,परधूल-भरे-सेअर्जुनतरुकेनीचे

एकतारपरबिजलीकेवेसटेहुएबैठेथे -
दोपक्षीछोटे-छोटे,

घनीछाँहमें,जगसेअलग;किंतुपरस्परसलग।

औरनयनशायदअधमीचे।

औरउषाकीधुँधली-सीअरुणालीथीसाराजगसींचे।

छोटे,इतनेक्षुद्र,किजगकीसदासजगआँखोंकीएकअकेलीझपकी -
एकपलमेंवेमिटजाएँ,कहींपाएँ -

छोटे,किंतुद्वित्वमेंइतनेसुंदर,जग-हियईर्ष्यासेभरजावे;

भरक्यों- भरासदारहताहै- छल-छलउमड़ाआवे!

— सलग,प्रणयकीआँधीमेंमानोलेदिन-मान,

विधिकाकरते-सेआह्वान।

मैंजोरहादेखता,तबविधिनेभीसबकुछदेखाहोगा-

वहविधि,जिसकेअधिकृतउनकेमिलन-विरहकालेखाहोगा-

किंतुरहेवेफिरभीसटेहुए,संलग्न-

आत्मतामेंहीतन्मय,तन्मयतामेंसततनिमग्न!

और—बीतचुकाजबमेरेजानेसमययुगोंका—

आयाएकहवाकाझोंका—काँपेतार—झरादोकणनीहार—

उससमयभीतोउनकेउरकेभीतर

कोईख़लिशनहींथी—कोईरिक्तनहींथा—

नहींवेदनाकीटीसोंकोस्थानकहींथा!

तबभीतोवेसहजपरस्परपंखसेपंखमिलाए

वाताहततमकीझगझोरमेंभीअपनेचारोंओर

एकप्रणयकानिश्चलवातावरणजमाए

उड़ेजारहेथे,अतिशयनिर्द्वंद्व—

औरविधिदेखरही—नि:स्पंद!

लौटचलाआयाहूँ,फिरभीप्राणपूछतेजातेहैं

क्यावहसचथा!औरनहींउत्तरपातेहैं—

औरकहेहीजातेहैं

किआजमैं

अचरजएकदेखआया।


- अज्ञेय।

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