आजसवेरे
अचरजएकदेखमैंआया।
एकघने,परधूल-भरे-सेअर्जुनतरुकेनीचे
एकतारपरबिजलीकेवेसटेहुएबैठेथे -
दोपक्षीछोटे-छोटे,
घनीछाँहमें,जगसेअलग;किंतुपरस्परसलग।
औरनयनशायदअधमीचे।
औरउषाकीधुँधली-सीअरुणालीथीसाराजगसींचे।
छोटे,इतनेक्षुद्र,किजगकीसदासजगआँखोंकीएकअकेलीझपकी -
एकपलमेंवेमिटजाएँ,कहींनपाएँ -
छोटे,किंतुद्वित्वमेंइतनेसुंदर,जग-हियईर्ष्यासेभरजावे;
भरक्यों- भरासदारहताहै- छल-छलउमड़ाआवे!
— सलग,प्रणयकीआँधीमेंमानोलेदिन-मान,
विधिकाकरते-सेआह्वान।
मैंजोरहादेखता,तबविधिनेभीसबकुछदेखाहोगा-
वहविधि,जिसकेअधिकृतउनकेमिलन-विरहकालेखाहोगा-
किंतुरहेवेफिरभीसटेहुए,संलग्न-
आत्मतामेंहीतन्मय,तन्मयतामेंसततनिमग्न!
और—बीतचुकाजबमेरेजानेसमययुगोंका—
आयाएकहवाकाझोंका—काँपेतार—झरादोकणनीहार—
उससमयभीतोउनकेउरकेभीतर
कोईख़लिशनहींथी—कोईरिक्तनहींथा—
नहींवेदनाकीटीसोंकोस्थानकहींथा!
तबभीतोवेसहजपरस्परपंखसेपंखमिलाए
वाताहततमकीझगझोरमेंभीअपनेचारोंओर
एकप्रणयकानिश्चलवातावरणजमाए
उड़ेजारहेथे,अतिशयनिर्द्वंद्व—
औरविधिदेखरही—नि:स्पंद!
लौटचलाआयाहूँ,फिरभीप्राणपूछतेजातेहैं
क्यावहसचथा!औरनहींउत्तरपातेहैं—
औरकहेहीजातेहैं
किआजमैं
अचरजएकदेखआया।
- अज्ञेय।
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संपादकीय पसंद
बहुत सुंदर विवरण दो मूक पक्षियों की प्रणय वेला का----
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