बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

ऐसा करना

कभी पास बैठो तो 
छलकी-छलकी आँखें देखना 
मुस्कुराहटें फ़रेब देती हैं 
और मैं अक्सर ही मुस्कुराती हूँ। 

साथ चलो तो ध्यान आगे बढ़ने पर नहीं 
मेरे छोटे क़दमतालों पर रखना 
मैं अक्सर पीछे छूट जाती हूँ। 

मिलो कभी तो औचक मिलना 
किसी दिन-बार और समय का मशविरा किए बग़ैर 
मैं अक्सर तैयारियों से घबराती हूँ। 

मेरा हाथ थाम लेने का साहस जुटा पाओ 
तो गले लगाने की उदारता भी दिखाना 
मैं एक विवश दूरी पर ठिठकी खड़ी सकुचाती हूँ। 

बिन कहे मेरी पीर समझना 
बंजर आँखों का नीर समझना 
मैं तुमको याद करती हूँ, मगर कहते लजाती हूँ। 

- सपना भट्ट।
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विजया सती की पसंद 

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