शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

जाहिल मेरे बाने

मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पांवों चलता हूँ 
मैं असभ्य हूँ क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूँ 

मैं असभ्य हूँ क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूँ 
मैं असभ्य हूँ क्योंकि ढोल पर बहुत ज़ोर से गाता हूँ 

आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर 
आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर 

आप सभ्य हैं क्योंकि धन से भरी आपकी कोठी 
आप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ लेते हैं पोथी 

आप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैं 
आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े ख़ून सने हैं 

आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे 
आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढंग हमारे 

मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने 
धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटे हूँ याने!

- भवानीप्रसाद मिश्र।
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संपादकीय पसंद 

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