सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

महानगर में कवि

इसइतनेबड़ेशहरमें

कहींरहताहैएककवि

वहरहताहैजैसेकुएँमेंरहतीहैचुप्पी

जैसेचुप्पीमेंरहतेहैंशब्द

जैसेशब्दमेंरहतीहैडैनोंकीफड़फड़ाहट

वहरहताहैइसइतनेबड़ेशहरमें

औरकभीकुछनहींकहता


सिर्फ़कभी-कभी

अकारण
वहहोजाताहैबेचैन
फिरउठताहै
निकलताहैबाहर
कहींसेढूँढ़करलेआताहैएकखड़िया
औरसामनेकीसाफ़चमकतीदीवारपर
लिखताहै‘क’
एकछोटा-सा
सादा-सा‘क’
देरतकगूँजताहैसमूचेशहरमें
‘क’मानेक्या
एकबुढ़ियापूछतीहैसिपाहीसे
सिपाहीपूछताहै
अध्यापकसे
अध्यापकपूछताहै
क्लासकेसबसेख़ामोशविद्यार्थीसे
‘क’मानेक्या
साराशहरपूछताहै
औरइसइतनेबड़ेशहरमें
कोईनहींजानता
किवहजोकविहै
हरबारज्योंही
उठाताहैहाथ
ज्योंहीउससाफ़चमकतीदीवारपर
लिखताहै‘क’
करदियाजाताहैक़त्ल!
बसइतनाहीसचहै
बाक़ीसबध्वनिहै
अलंकारहै
रस-भेदहै
मैंइससेअधिकउसकेबारेमें
कुछनहींजानता
मुझेखेदहै।

- केदारनाथ सिंह।
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