माँ कभी स्कूल नहीं गई
इसीलिए नहीं पढ़ पाई
कभी कोई किताब
बस दस तक गिन पाती है
उंगलियों में
इसीलिए नहीं पढ़ पाई
कभी कोई किताब
बस दस तक गिन पाती है
उंगलियों में
........रही हमेशा गाँव में
सो शहर भी बहुत कम देखा
माँ बहुत कम लोगों से मिली
शायद ही कभी सुनी हो
किसी बहुत पढ़े-लिखे की कोई बात
धीरे-धीरे बूढी होती माँ
सारी उम्र अपने पालतुओं के बीच रही
इंसानों से ज्यादा
जंगलों में अकेले भटकती रही
एक-एक मुठ्ठी घास के लिए
सो शहर भी बहुत कम देखा
माँ बहुत कम लोगों से मिली
शायद ही कभी सुनी हो
किसी बहुत पढ़े-लिखे की कोई बात
धीरे-धीरे बूढी होती माँ
सारी उम्र अपने पालतुओं के बीच रही
इंसानों से ज्यादा
जंगलों में अकेले भटकती रही
एक-एक मुठ्ठी घास के लिए
ग़ुस्से, प्यार और दुख के अलावा
शायद नहीं जानती कोई मानवीय भाव
नहीं समझती
शायद
नागरिक होने के अपने अधिकार
टीवी में खबरों वाले वक़्त
रसोई में सेंक रही होती है रोटियाँ
दुनिया का मतलब समझती है
अपना परिवार और गाँव
शायद नहीं जानती कोई मानवीय भाव
नहीं समझती
शायद
नागरिक होने के अपने अधिकार
टीवी में खबरों वाले वक़्त
रसोई में सेंक रही होती है रोटियाँ
दुनिया का मतलब समझती है
अपना परिवार और गाँव
बहुत सरल और साहसी मेरी माँ
बस एक बात जानती है
कि जंगल, घर और कहीं भी बाहर
बिना दरांती नहीं जाना है
इंसान जानवर नहीं
कि सिर्फ़ भूखे पेट ही हमलावर हों
इंसान
कहीं भी घात लगाए मिल सकते हैं।
बस एक बात जानती है
कि जंगल, घर और कहीं भी बाहर
बिना दरांती नहीं जाना है
इंसान जानवर नहीं
कि सिर्फ़ भूखे पेट ही हमलावर हों
इंसान
कहीं भी घात लगाए मिल सकते हैं।
- दीपिका ध्यानी घिल्डियाल।
-----------------------------
विजया सती की पसंद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें