मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023

अल्लाह मियाँ

नील गगन पर बैठे कब तक
चाँद सितारों से झाँकोगे 
पर्वत की ऊँची चोटी से कब तक
दुनिया को देखोगे
आदर्शों के बंद ग्रंथों में कब तक
आराम करोगे
मेरा छप्पर टपक रहा है
बनकर सूरज इसे सुखाओ
खाली है आटे का कनस्तर
बनकर गेंहू इसमें आओ
माँ का चश्मा टूट गया है
बनकर शीशा इसे बनाओ
चुप-चुप हैं आँगन में बच्चे
बनकर गेंद इन्हें बहलाओ
शाम हुई है चाँद उगाओ
पेड़ हिलाओ
हवा चलाओ
काम बहुत है हाथ बटाओ
अल्लाह मियाँ 
मेरे घर भी आ ही जाओ
अल्लाह मियाँ!

- निदा फ़ाज़ली।
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विजया सती की पसंद 

2 टिप्‍पणियां:

  1. मासूम सी ख्वाहिशें, छोटी छोटी चाहते... अब तो आ ही जाओ अल्लाह मिंयाँ

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  2. शानदार! बहुत ही सहज सरल भाव में सुन्दर अभिव्यक्ति

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