हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे
थीं सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िंदगी के अजीब मेले थे
ख़ुदकुशी क्या दुखों का हल बनती
मौत के अपने सौ झमेले थे
ज़हनो-दिल आज भूखे मरते हैं
उन दिनों हमने फ़ाके झेले थे।
- जावेद अख़्तर।
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बिनीता सहाय की पसंद
वाह वाह! सिर्फ दिल की गली में खेले थे!!
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