सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

ग़ज़ल

हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे

इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे

थीं सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िंदगी के अजीब मेले थे

ख़ुदकुशी क्या दुखों का हल बनती
मौत के अपने सौ झमेले थे

ज़हनो-दिल आज भूखे मरते हैं
उन दिनों हमने फ़ाके झेले थे।

- जावेद अख़्तर।
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