बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

जय घोष एक त्रासदी है

बहुत भोले हो तुम
बार-बार धोखा खाकर भी तुम
गढ़ने लगते हो
एक मूर्ति
किसी नायक की
जो खोलेगा
तुम्हारी गिरह गाँठ
सहलाएगा उन ज़ख़्मों को
जो रिस रहें हैं सदियों से
उसके पास होगी
फूलों वाली जादू की छड़ी
हवा में घुमाएगा गोल-गोल
कहेगा हाँ!
मैं ही तो हूँ
मुक्तिदाता
मेरे पीछे आओ
तुमने भी सुनी तो थी बचपन में
उस बाँसुरी वादक की कहानी
जिसके पीछे चल दिए थे
सब के सब चूहे।
बार-बार भूल जाते हो
बहुत भोले हो यार
बचो उन आवाज़ों से
जो बहुत तेज़ होती हैं
जय घोष त्रासदी
हर जीत मानव की छाती पर हुआ घाव है।
कविता अभी ज़िंदा है
संगीत की लहरी
और
फूलों की घाटी का स्वप्न ज़िंदा है अभी।

-  राजेश अरोड़ा
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