शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

चायवाला

रोज़ सुबह
बिना नागा
वह पहुँच जाता है
नुक्कड़ वाले चौराहे पर बेचने चाय।
दो रूपए वाली उसकी चाय,
भगा देती है,
रात की बची नींद,
नींद का बचा असर
लोगों को तैयार करती है
नए दिन के लिए।

मिटाती है हुड़क,
हुड़क,
जिसकी गिरफ़्त में कई लोग हैं,
उसके सिर्फ़ एक कप के लिए।
बहुतेरों ने अपने रास्ते बदल लिए हैं
वे अब
नुक्कड़ वाले उस चौराहे से
उसकी दुकान से गुज़रते हैं।

बस एक मुट्ठी चेतना के लिए
ज़रा-सी मूर्छा भगाने
घोलने थोड़ी-सी मिठास
भगाने जरा-सी थकान
सोचने नए सिरे से
बैठने साथ-साथ
करने उत्तेजक वार्तालाप 
चलाने फिर से तेज़ कलम
तेज़ी से निबटाने अधूरा काम
सोच की भाल तेज करने
भगाने उबासी, मनहूसियत
हटाने अनचाही धुंध,
  
उसकी दो रूपए की चाय,
बड़े दफ्तर, कचहरी, रेस्ट हाउस 
और भी जाने कहाँ-कहाँ जाती है।
पर उसके पास हिसाब नहीं है
कि
उसने क्या-क्या किया।

वह बस बेचता है,
और शाम को हिसाब कर लेता है
मुट्ठी भर सिक्कों का।

- तरुण भटनागर
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