कहाँ चली जाती हैं
हँसती खिलखिलाती
चहकती महकती
कभी चंचल नदियाँ
तो कभी ठहरे तालाब-सी लड़कियाँ
हँसती खिलखिलाती
चहकती महकती
कभी चंचल नदियाँ
तो कभी ठहरे तालाब-सी लड़कियाँ
क्यों चुप हो जाती हैं
ग़ज़ल-सी कहती
नग़मों में बहती
सीधे दिल में उतरती
आदाब-सी लड़कियाँ
क्यों उदास हो जाती हैं
सपनों को बुनती
खुशियों को चुनती
आज में अपने कल को ढूँढती
बेताब-सी लड़कियाँ
कल दिखी थी, आज नहीं दिखती
पंख तो खोले थे, परवाज़ नहीं दिखती
कहाँ भेज दी जाती हैं
उड़ने को आतुर
सुरख़ाब-सी लड़कियाँ
- सुदर्शन शर्मा
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