सारी दुनिया की स्त्रियों
मुझे क्षमा कर देना उन सभी अपराधों के लिए
जो मैं आज तक करता रहा तुम पर।
मुझे क्षमा कर देना उन सभी अपराधों के लिए
जो मैं आज तक करता रहा तुम पर।
कुछ अपराध अनजाने में भी हुए होंगे
और कुछ किए गए होंगे इसलिए
कि तुम्हारी आँखों की इबारतें पढ़कर
डगमगाई होगी मेरी सत्ता
तिलमिलाया होगा मेरा अहम।
मुझे बचपन से सिखाया गया था
तुम हारने के लिए नहीं बने हो।
तुम्हें देखकर हर बार बेचैन हो जाता था मैं
पकड़कर क़ैद करना चाहता था
उन तितलियों को
जो मँडराती थी तुम्हारे चेहरे के इर्द-गिर्द
रस-रंग की खोज में
मैं भी छूकर देखना चाहता था उन सपनों को
जो तैर रहे थे तुम्हारी आँखों में।
तुम्हारा मन तुम्हारा था
तुम्हारे सपने भी तुम्हारे थे
और शरीर भी केवल तुम्हारा ही था
उनसे जुड़े निर्णय भी सब तुम्हें ही लेने थे।
सिकंदर की तरह निकलता है हर पुरुष
पूरी दुनिया फतह करने
बिना यह जाने कि अगर
उसने जीत भी ली सारी दुनिया
तो क्या उसे भोग पाएगा समग्रतः
हर सिकंदर मरता ही है किसी तीर की नोक से
बरसों इस सत्य का अहसास ही नहीं हुआ मुझे।
सुनेत्रा,
आज, बुद्ध की साक्षी में लिख रहा हूँ यह बयान
जो ध्यानमग्न हैं!
पता नहीं वह इस शपथ-पत्र के
गवाह बनना चाहते हैं या नहीं
उनसे बेहतर कौन समझता है पुरुष-मन!
गवाह बनना चाहते हैं या नहीं
उनसे बेहतर कौन समझता है पुरुष-मन!
इसलिए
सारी दुनिया की स्त्रियों
मुझे क्षमा कर देना उन सभी अपराधों के लिए
जो मैं आज तक करता रहा तुम पर।
- राजेश्वर वशिष्ठ
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अनूप भार्गव के सौजन्य से
देर से सही, कभी तो स्वीकार कर ही लिया।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंयथार्थ की स्वीकृति ने मन को छू लिया।आभार।