कभी बाज़ार में खड़े होकर
बाज़ार के ख़िलाफ़ देखो
बाज़ार के ख़िलाफ़ देखो
उन चीज़ों के ख़िलाफ़
जिन्हें पाने के लिए आए हो इस तरफ़
ज़रूरतों की गठरी कंधे से उतार देखो
कोने में खड़े होकर नक़ली चमक से सजा
तमाशा-ए-असबाब देखो
बाज़ार आए हो कुछ लेकर ही जाना है
सब कुछ पाने की हड़बड़ी के ख़िलाफ़ देखो
डंडी मारने वाले का हिसाब और उधार देखो
चैन ख़रीद सको तो ख़रीद लो
बेबसी बेच पाओ तो बेच डालो
किसी की ख़ैर में न सही अपने लिए ही
लेकर हाथ में जलती एक मशाल देखो
कभी बाज़ार में खड़े होकर
बाज़ार के ख़िलाफ़ देखो
- यतीन्द्र मिश्र
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
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