शनिवार, 26 अक्तूबर 2024

बहते जल के साथ न बह

बहते जल के साथ न बह
कोशिश करके मन की कह।
 
मौसम ने तेवर बदले
कुछ तो होगी ख़ास वजह।
 
कुछ तो ख़तरे होंगे ही
चाहे जहाँ कहीं भी रह।
 
लोग तूझे कायर समझें
इतने अत्याचार न सह।
 
झूठ कपट मक्कारी का
चारण बनकर ग़ज़ल  कह।

जगदीश व्योम
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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