क्या कहा?
तुम राम पर कविता लिखोगे?
आपने किस घाट पर
चंदन घिसा है
कब भला रत्नावली
का ग़म रिसा है
संत तुलसीदास से आगे दिखोगे?
गाँव में बीमार बूढ़ी
माँ पड़ी है
भार्या बस साथ रहने
पर अड़ी है
पुत्र की कैसे कसौटी पर टिकोगे?
माँ पड़ी है
भार्या बस साथ रहने
पर अड़ी है
पुत्र की कैसे कसौटी पर टिकोगे?
बेर जूठे आपने खाए
कभी क्या
द्वार शबरी के यहाँ आए
कभी क्या
मोल जैसे ही लगा फ़ौरन बिकोगे!
मोल जैसे ही लगा फ़ौरन बिकोगे!
राम की गहराइयों तक
तो पहुँचिए
त्याग की परछाइयों तक
तो पहुँचिए
या कि कचरे-सा उड़ोगे या फिंकोगे?
आपकी सीता कभी
बिछुड़ी नहीं है
आँख रत्ती-भर कभी
निचुड़ी नहीं है
फिर विरह की आँच में कैसे सिकोगे?
- दिनेश प्रभात
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अनूप भार्गव के सौजन्य से
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